बात में कोई न कोई असर तो होता है...
भले ही जान ले दुनिया हमारा हाल-ऐ-दिल,
हमारे अश्कों से कोई बेखबर तो होता है...
साथ हो सकता है बेशक ज़िन्दगी भर के लिए,
साँस टूट जाने का थोड़ा सा डर तो होता है...
राहों की मुश्किलों से कौन डरता है,
साथ सबके ही कोई हमसफ़र तो होता है...
हरेक शाम विदा कहते हैं सब लोग उनका,
अपना कहने के लिए एक घर तो होता है...
जीते-जीते भला क्यों मरने लगी है भावना,
बेरुखी में भी एक धीमा ज़हर तो होता है...!!!
10 comments:
बहुत ही खूबसूरत.
जीते-जीते भला क्यों मरने लगी है भावना,
बेरुखी में भी एक धीमा ज़हर तो होता है...!!!
bahut khoob bhabnaye hai aapki, bahut hi bajandar baat kahi hai aapne.
जीते-जीते भला क्यों मरने लगी है भावना,
बेरुखी में भी एक धीमा ज़हर तो होता है...!!!
बहुत ही खूबसूरत.
चिट्ठा जगत में आपका स्वागत है। आपकी सक्रियता के लिए शुभकामनाएं।
भले ही जान ले दुनिया हमारा हाल-ऐ-दिल,
हमारे अश्कों से कोई बेखबर तो होता है...
sach kehti ho , ashkon ki bhaasha ko sab nahi samajh sakte . grea8
भावना जी,
जीते-जीते भला क्यों मरने लगी है भावना,
बेरुखी में भी एक धीमा ज़हर तो होता है...!!!
अच्छी लगी. बधाई. दो त्वरित पंक्तियाँ जोड़ना चाहता हूँ-
लोग मरते हैं शहर में जिन्दगी चलती ही है.
शाम होती क्या हमेशा फिर सहर तो होता है..
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
very nice presentation Welcome in blogging world visit me at manoria.blogspot and kanjiswami.blog.co.in
भले ही जान ले दुनिया हमारा हाल-ऐ-दिल,
हमारे अश्कों से कोई बेखबर तो होता है...
achhi panktiyan
badhai
जीते-जीते भला क्यों मरने लगी है भावना,
बेरुखी में भी एक धीमा ज़हर तो होता है...!!!
बेहतरीन रचना, यथार्थपरक लेखनी...
भावना का परिष्कार ही वस्तुत: आत्मबल का अभिवर्द्धन करता है।
जीते-जीते भला क्यों मरने लगी है भावना,
बेरुखी में भी एक धीमा ज़हर तो होता है.....
simply beautiful
badhaai...
-Madhuri
Post a Comment