20.6.08

लौ.....

हारता अँधेरा देखा मैंने....
उस तुच्छ दीप से,
जिसकी लौ ....संघर्षरत रही.....
जीवन भर,
उस अन्धकार से॥
जो अपनी गहराई के दंभ से
फूला न समाता था,
हर शाम निष्ठुरता से
उजाले को निगल जाता था!
पर कैसा विवश
दिख रहा था आज
उस लौ के समक्ष...
जो साहस निश्चय और दृढ़ता से ,
लड़ रही थी अंधेरे से....!
मैंने पाया ...यही जीवन है...
उस जलती लौ का संदेश...
'पलायन नही संघर्ष...'
यही है शायद...
अस्तित्व का औचित्य
और जीवन का उत्कर्ष!!!

17.6.08

वेदना

किस ओर नहीं रोता है स्वर....

परिहासों का विस्तृत मेला
मेरे संग यादों का ठेला
रीते नैना और रीते कर!

मुख मौन मगर बोला करतीं
सब भेदों को खोला करतीं
बरसातीं अखियाँ निर्झर !

मन चाहा पंछी सी उड़ जाऊं
कल्पित पंखों को फैलाऊं
पर थाह नहीं देता अम्बर!

मानव जीवन पथ पर उठ गिर
फ़िर मृत्यु अंक में रखकर सर
सोता निरीह बालक बनकर!

हाय! कितना निष्ठुर संसार
वेदना के मौन उद्दगार
देते मन को करुना से भर!

किस और नहीं रोता है स्वर......

कैक्टस की व्यथा

चिर तिरस्कृत
उपेक्षित ....अकेला....
मरुभूमि में
सूर्य की तपती धुप में
पर फिर भी
जीवित.....
रो रहा था पीड़ा से
दुखी...अपने भाग्य पर....
क्यो आच्छादित किया विधाता ने मुझे...
काँटों और सिर्फ़ काँटों से...
काश मैं भी पुष्प होता....
किसी रंगीन उपवन का
तो शायद खुश रहता....
यूँ अपने भाग्य पर आंसू तो न बहाता,
काश........
एक बादल होता
मुक्त आकाश में विचरण तो करता...
न की यूँ वीरान में ॥
आहें भरता।
पर सोचा तो पाये
की कांटेदार हूँ....
इसीलिए जीवित हूँ आज तक ,
अन्यथा मैं भी.... मानव के स्वार्थ की
बली चढ़ जाता....
तोड़ के मसल दिया जाता....
या अपने आंसू बरसाकर....
अस्तित्वहीन हो जाता......!!!!!!

अनुभव....


जब आंसू मोती बन जायें
और दुःख पार कर ले
अपनी अन्तिम सीमा को ,
उमड़ती हुई भावनायें
जब रूप लेलें
स्याह बादलों का ,
जब अनसुलझे से रहस्य
खोलने लगे अपने पटल
और बुझी हुई आशाएं
पुनः ज्वाला बन के उठें,
खोये हुए सारे स्वप्न
टूटे और बिखरे अरमान
बन जाएँ एक सागर जैसे
परिपूर्ण हों अतल गहरियों में ....
जब कामनाएं सुगन्धित हो जायें
खिलकर कलियों की तरह
पर काँटों से रहित नहीं.....
भूले हुए से कुछ अनुभव
पुनः याद आने लगें
और दिखने लगें नई राहें,
जब लडखडाते कदम
बढ़ते ही जाएँ
बिना किसी आलंबन के.......
समझ लेना तब तुम
शक्ति पुंज संचित होने लगा है
तुम्हारे मन मस्तिष्क में,
आत्म बल परिपूर्ण है
चरम उत्साह से,
यही तो वो क्षण है....
जब प्रारम्भ करनी है तुम्हे
एक अनंत यात्रा...
बढ़ा लो कदम
उसी और दृढ़ता से
जहाँ प्रतीक्षा कर रही है
मंजिल तुम्हारी.........!!