13.3.09

कमी...

फ़िर हुए कुछ स्वप्न खण्डित,

फ़िर प्रयत्नों की कमी!

मांगती कुछ रौशनी,

पर चाँद भी तो है नहीं!

न बरसती आँख भी,

पर बादलों में है नमी!

भागता सा वक्त है,

पर ज़िन्दगी जैसे थमी!

पा लिया सब कुछ हो जैसे,

फ़िर भी है कोई कमी!

क्या करुँ कैसे बचूं,

ये सिलसिला थमता नहीं!

मांगता रहता है आश्रय,

मन कहीं रमता नहीं!

पर उम्मीदें छोड़ दूँ क्या.....?

इसकी भी क्षमता नहीं....!!!

30.1.09

अर्पण....

मैं अकिंचन
सोचती थी देव को,
क्या करुँ अर्पण....

सिर्फ श्रध्हा,
रख सकी थी चरणों में बस
था यही धन.....

मांगती थी,

ज्ञान से ,शक्ति से भर जाए
ये जीवन....

जानती थी,
देव की मूरत है
मात्र प्रस्तरखंड....

पर जो देखा,
देव की प्रतिमूर्ति है
मेरा ही मन....

मैं क्या देती,
मन मुझे अर्पित करे
अंतिम शरण....

संशय मिटाकर,
देता है बल,कहता है कर
कोई सृजन.....

पथ प्रदर्शक
बन चुका अब देव
मेरा अंतःकरण.....!!