9.8.08

जिंदगी.....

फिर चले कोई कारवाँ कर, दे शुरू कोई सफर,
रात न जिसमे हो कोई,और न कोई सहर,
वक्त के हो दायरे और मंजिलें भी कम न हो ,
लहरों की हो ठोकरें और साहिल भी नम न हो,
जिंदगी के अंदाज़ को कुछ ऐसा ही ताल मिले,
जिसपे चले आज हम,कल ज़माने को मिसाल मिले।


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जिंदगी उखड़ी रही थोडी मुडी थोडी तुडी,
फ़िर भी एहसासों से सवंरी और सपनो से जुड़ी,
खुल रहे हैं दर परत दर जिंदगी के फैसले,
हो रहे हैं और भी मज़बूत मेरे हौसलें.

1 comment:

Roopesh Singhare said...

बहुत बेहतर...अब कुछ आवाज़ मिली है जिन्दगी को...