26.9.08

चिंतन....

जब भाव नहीं प्रीती कैसी,
जब प्रीती नहीं बंधन कैसा?
बंधन का विषय भी व्यर्थ रहा,
जब विषय नहीं चिंतन कैसा?

क्यों सृजन किया अवशेषों से,
क्यों स्वप्नों का अभिषेक किया?
क्यों स्पर्श किया स्मृतियों को ,
क्यों सत्य-तथ्य को एक किया?
हर अनुभूति निष्प्राण रही ,
जब प्राण नहीं जीवन कैसा?

कितनी श्रद्धा ,कितनी भक्ति,
कितने स्वर,कितनी प्रार्थनाएं,
उन चरणों को अर्पित कर दी,
कितनी पावन आराधनायें!
पर प्रस्तर था,वह मौन रहा,
जब ईश नहीं,वंदन कैसा?

सजल नयनों की धाराएं,
अविरल बह जीवन दान करें!
पल-पल सिंचित कर कामनाएं,
अदृश्य का आह्वान करें!
अब हर्षित मन ,अवसाद नहीं ,
जब व्यथा नहीं क्रंदन कैसा?

क्रंदन का विषय भी व्यर्थ रहा,
जब विषय नहीं,चिंतन कैसा?

2 comments:

आत्महंता आस्था said...

अत्यन्त गहरे से अपनी भावनाओं को प्रस्तुत किया है. अक बहुत अच्छी कविता जो सचमें अच्छी और भावप्रवण है. welcome to http://atmhanta.blogspot.com

roushan said...

सुंदर अभिव्यक्ति