खींच ली पैरों तले की ज़मीन.....
फ़िर कहते हो
बना ले अपना आशियाना
गहरी नींव पर....
तुम तो ये कहकर महान हो गए....
और मैं .....
सिद्ध हो गई...
असफल॥
एक बार फ़िर।
............
सीखने का मन तो बहुत हुआ....
थोडी सी दुनियादारी।
पर ये कमबख्त एहसास.....
चेहरे पर मुखौटे को,
टिकने ही नही देते।
............
रास्ते बहुत थे......
काश तुमने चलने दिया होता.....
थोरे पत्थर रखे हुए थे मैंने,
संभाल कर...
अगर दलदली ज़मीन मिलती....
तो भी बना लेती अपना रास्ता,
पर वापिस न आती!
पर तुमने तो मुझे,
चलने ही नहीं दिया!
3 comments:
Excellent! Keep it up.
.............xcellent lines Didi...............all r gud ones.......dun write much of pessimistic.....kyonki dard k koi maayne nahien...pain doesnt have words.......But really...complete page is having a fine blend of ur xpressions.....best wishes........................
accha laga aapko padhna...please word verification disable kar dijiye,comment karne me dikkat hoti hai.
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