1.7.08

गलते हुए....

खामोशी की आँख के आंसू...
न पोछना तुम...
कहीं तुम्हारी उँगलियों के पोर
भीग गए तो...
उसकी नमी तुम्हे भी न बना दे....
मेरे जैसा....!
मैंने भी तो एक दिन
यही किया था...
आज तक उस नमी से गल रही हूँ
कागज़ पर...!!!

2 comments:

Krishan lal "krishan" said...

dbfdscwati sundar kavita. Achhaa laga aap ke blog par aa kar.

janumanu said...

uffffffffff tassavur hai