भावनाएं कभी मर सकती हैं भला...... वैसे लोग कोशिश तो बहुत करते हैं.....मुझे जिंदा रहने के लिए इनकी ज़रुरत हैं.....बिलकुल वैसे ही जैसे मुझे साँसों की ज़रुरत है.....अगर कविता माध्यम बन जाये इनकी अभिव्यक्ति का......तो ये कोई प्रयास नहीं.....बल्कि सहज और सरल अभिव्यक्ति है...!
1.7.08
गलते हुए....
खामोशी की आँख के आंसू... न पोछना तुम... कहीं तुम्हारी उँगलियों के पोर भीग गए तो... उसकी नमी तुम्हे भी न बना दे.... मेरे जैसा....! मैंने भी तो एक दिन यही किया था... आज तक उस नमी से गल रही हूँ कागज़ पर...!!!
2 comments:
dbfdscwati sundar kavita. Achhaa laga aap ke blog par aa kar.
uffffffffff tassavur hai
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