सपने देखने का अपराधबोध
पनपने लगता है अंतस मे
हर उस क्षण
जब यह प्रक्रिया
प्रतीत होने लगती है
निहायत ही स्वार्थी,आत्मकेंद्रित
और वर्गीय!
सपने देखने का अपराधबोध
पनपने लगता है अंतस मे
जब कक्षा १२ की उस निर्दोष के
दोनों पोलियोग्रस्त पैरों को छूते हुए
मेरे मुह से निकलता है...
"काश! एक पैर भी ठीक होता
तो तकलीफ़ थोडी कम हो जाती"
एक मृत सपने में से जैसे आवाज़ आती है
"मैम ! दोनों पैर ठीक होते तो?"
और रोने लगती है पूरी कक्षा,वो निर्दोष और खामोशी...!
सपने देखने का अपराधबोध
पनपने लगता है अंतस में
जब गली के नुक्कड़ की
'शर्मा स्वीट्स' में मेरे ४ समोसे 'पैक' करते
८ साल के छोटू से ये प्रश्न पूछ बैठती हूँ
"बेटा! स्कूल नहीं जाते हो क्या?"
एक मृत सपने में से जैसे आवाज़ आती है
"अच्छा नही लगता"
और हसने लगते हैं दूकान के बाकी छोटू!
सपने देखने का अपराधबोध
पनपने लगता है अंतस में
जब कचरा बीनते बच्चे
न जाने क्या पाकर चले जाते है एक किनारे
और सिगरेट के एक अधजले टुकड़े को
फिर जलाकर,जली हुई ज़िन्दगी में
धुंआ भरने लगते हैं!
मैं कह देती हूं
"क्यों पीते हो,मरोगे एक दिन!"
एक मृत सपने से जैसे आवाज़ आती है
"जी! मज़ा आवे है!"
और खिलखिला दिए बच्चे,सिगरेट और धुआं!
सपने देखना अपराध नहीं होता
और टूटने, चुभने, जलने, बिखरने से
नहीं मिटते सपने!
पर शहर की भीड़ की
कुछ गुमनाम आँखों में
नहीं पलता एक भी सपना.....
पर मेरे भीतर पलने लगता है
एक अपराधबोध
उस स्वार्थ के लिये
जिसके सारे सवाल '
मेरे सपनों' पर आकर
ठहर जाते हैं
आज की तरह....!
8 comments:
पने देखने का अपराधबोध
पनपने लगता है अंतस मे
जब कक्षा १२ की उस निर्दोष के
दोनों पोलियोग्रस्त पैरों को छूते हुए
मेरे मुह से निकलता है...
"काश! एक पैर भी ठीक होता
तो तकलीफ़ थोडी कम हो जाती"
एक मृत सपने में से जैसे आवाज़ आती है
"मैम ! दोनों पैर ठीक होते तो?"
और रोने लगती है पूरी कक्षा,वो निर्दोष औ
बहुत सुन्दर। सपने देखना कोई अपराध नहीं है। खुलकर देखिए।
bhaut sarthak prashan uthaiye hai. prakhar abhivyakti.
http://www.ashokvichar.blogspot.com
एक मुकम्मल सवाल का बेबस होना और उसकी बेबसी में खुद का कैद होना कितना तकलीफदेह होता है...ज़ाहिर है आपकी इस कविता से..!!!
man ko choo jaati hai .......
bahut sunder ...
bahut hi satik kavita.....
सपने देखने का अपराधबोध
पनपने लगता है अंतस मे
जब कक्षा १२ की उस निर्दोष के
दोनों पोलियोग्रस्त पैरों को छूते हुए
मेरे मुह से निकलता है...
"काश! एक पैर भी ठीक होता
easi sanwedana kam hi dekhana ko milti hai.
खूबसूरत
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