भावनाएं कभी मर सकती हैं भला...... वैसे लोग कोशिश तो बहुत करते हैं.....मुझे जिंदा रहने के लिए इनकी ज़रुरत हैं.....बिलकुल वैसे ही जैसे मुझे साँसों की ज़रुरत है.....अगर कविता माध्यम बन जाये इनकी अभिव्यक्ति का......तो ये कोई प्रयास नहीं.....बल्कि सहज और सरल अभिव्यक्ति है...!
2.11.08
आस
थक गयी है॥ आस अपनी मंजिलों को खोजते खोजते, दायरों में घूम कर, फिर किसी पल ठहर, सांस लेती सब्र से ... फिर उठी, न जाने किसको ढूँढने में... पक गयी है........... थक गयी है!!!
थक गयी है॥ आस अपनी मंजिलों को खोजते खोजते, Thak bhale gayi ho aas, magar rokna to manjil par pahunch kar hi hai.Shubhkaamnayein aur swagat mere blog par bhi.
10 comments:
इतना निराशावादी लेखन क्यों ? -
ढूंढते हैं हम जिसे
वह एक दिन आ जायेगा
यह आस है विश्वास है
यह आस और विश्वास ही तो जिन्दगी की साँस है !
आस न थकती है, न पकती है।
कभी कभी आस टूटने का एहसास बड़ा दुःख दाई होता है...लेकिन आस है तो साँस है...
नीरज
aas ko thodaa sustaane dijiye fir uthkar dobara khadee ho jayegee nai ummeedon ke saath.
सांस लेती सब्र से ...
फिर उठी,
न जाने किसको ढूँढने में...
पक गयी है...........
थक गयी है!!!
यह आस और विश्वास ही तो जिन्दगी की साँस है !
आस को जीवित रखना ही जीवन के मध्य मे है
आस है तो जीवन है
किन्तु आपका लेखन सुंदर है
बहुत खूब लिखा है। इस उम्मीद पर ही तो दुनिया कायम है।
कविता भी जीवन की तरह है। कभी निराशा तो कभी आशा और उमंग। जाहिर है ये दोनों तत्व कविताओं में भी आयेंगे।
थक गयी है॥
आस अपनी मंजिलों को खोजते खोजते,
Thak bhale gayi ho aas, magar rokna to manjil par pahunch kar hi hai.Shubhkaamnayein aur swagat mere blog par bhi.
goood one
keep it up
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