भावनाएं कभी मर सकती हैं भला...... वैसे लोग कोशिश तो बहुत करते हैं.....मुझे जिंदा रहने के लिए इनकी ज़रुरत हैं.....बिलकुल वैसे ही जैसे मुझे साँसों की ज़रुरत है.....अगर कविता माध्यम बन जाये इनकी अभिव्यक्ति का......तो ये कोई प्रयास नहीं.....बल्कि सहज और सरल अभिव्यक्ति है...!
4.10.08
भगवान्..
भगवान् ने हमेशा मेरा विश्वास तोडा. इसीलिए.... कभी नहीं रही मेरी आस्थाएं उसके लिए... एक दिन गलती से मैंने तुम्हे भी भगवान् मान लिया था!
4 comments:
चलते-चलते आपकी छोटी पर अच्छी कविता पर नजर पडी.
शुभ्कामनाऍ
kitne sunder dhang se abhivakt kiya ....its awesome ...
bahut sundaer abhiwaqty.........ni:h sabd huuuun isis tareh likhty rahe aap..sada
आज फिर आपका ब्लॉग गहराई से देखने को विवश हो गया !
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