26.9.08

चिंतन....

जब भाव नहीं प्रीती कैसी,
जब प्रीती नहीं बंधन कैसा?
बंधन का विषय भी व्यर्थ रहा,
जब विषय नहीं चिंतन कैसा?

क्यों सृजन किया अवशेषों से,
क्यों स्वप्नों का अभिषेक किया?
क्यों स्पर्श किया स्मृतियों को ,
क्यों सत्य-तथ्य को एक किया?
हर अनुभूति निष्प्राण रही ,
जब प्राण नहीं जीवन कैसा?

कितनी श्रद्धा ,कितनी भक्ति,
कितने स्वर,कितनी प्रार्थनाएं,
उन चरणों को अर्पित कर दी,
कितनी पावन आराधनायें!
पर प्रस्तर था,वह मौन रहा,
जब ईश नहीं,वंदन कैसा?

सजल नयनों की धाराएं,
अविरल बह जीवन दान करें!
पल-पल सिंचित कर कामनाएं,
अदृश्य का आह्वान करें!
अब हर्षित मन ,अवसाद नहीं ,
जब व्यथा नहीं क्रंदन कैसा?

क्रंदन का विषय भी व्यर्थ रहा,
जब विषय नहीं,चिंतन कैसा?

12.9.08

मुक़द्दर......

हाँ, मुझे भी याद है वो काफिला और वो सफर,
सब चले हमको मगर रस्ता नज़र आया नहीं।

हाँ,बड़ी गहराई तेरी बात में हमको लगी,
डूबती खामोशियों को कोई सुन पाया नहीं।

हाँ,भरोसा था मगर इक लाश से ज़्यादा न था,
साँसे भी ले लीं मेरीऔर वो भी जी पाया नहीं।

हाँ ,मुझे एहसास था तेरी चुभन का दर्द का,
कांच मेरी रूह में था देख तू पाया नहीं।

हाँ, मुझे मालूम है वो सुनता है पर देर से,
खटखटाने दर किसी के घर खुदा आया नहीं।

हाँ,मुकद्दर से लडाई चल रही है आज तक,
हारना मुझको न आया, जीत वो पाया नहीं।

6.9.08

माँ......

माँ....
तुम्हारा हर स्वर याद आता है,
तरसते हैं हाथ तुम्हारे स्पर्श को
और यादों से दिल भर आता है!
हर क्षण में कितना अपनापन
भर देती थी तुम,
और जीवन का सारा सूनापन
हर लेती थी तुम!
अक्षत और कुमकुम से
लगा देती थी माथे पे
गोल गोल टीका,
सैकड़ों दुआएं मांग लेती थी
एक ही पल में.....
सारे दुःख दर्द छिपा लेती थी
अपने आँचल में,
कितने सपने दिखला देती थी
धुंधले कल में...!
याद है मुझे...
कैसे विचलित कर देते थे तुम्हे
छोटे मोटे ज़ख्म
मेरे इस तन के...
आज कैसे दिखाऊँ
रिसते हुए घाव....
इस मन के,
जीवन के.........!
न जाने क्या था
इस लाल धागे के रिश्ते में...
कि दुनिया भर की जंजीरे तोड़कर,
फ़िर इसी में बंधने का दिल करता है!
बाँध लो न फ़िर से मुझको,
कि कहीं बिखर के
खो न जाऊँ मैं...
भावनाओं से रहित
इस पथरीली दुनिया में,
कहीं पत्थर
हो न जाऊं मैं!
बुला लो मुझे अपने पास....
कि शायद फ़िर जी लें....
मेरे एहसास....!
मन पर लगी
सारी दुनियादारी की मैल ,
धो लेने दो...
आज फ़िर
अपनी गोद में सर रखकर
आँचल से ढककर
रो लेने दो......
जी भर के......!!!