29.8.08

भावना के लिए....

खाली लफ्जों से भला बात बना करती है?
बात में कोई न कोई असर तो होता है...

भले ही जान ले दुनिया हमारा हाल-ऐ-दिल,
हमारे अश्कों से कोई बेखबर तो होता है...

साथ हो सकता है बेशक ज़िन्दगी भर के लिए,
साँस टूट जाने का थोड़ा सा डर तो होता है...

राहों की मुश्किलों से कौन डरता है,
साथ सबके ही कोई हमसफ़र तो होता है...

हरेक शाम विदा कहते हैं सब लोग उनका,
अपना कहने के लिए एक घर तो होता है...

जीते-जीते भला क्यों मरने लगी है भावना,
बेरुखी में भी एक धीमा ज़हर तो होता है...!!!

27.8.08

क्षण में....

क्षण में बनते ,
पल में टूटे।
स्वप्न मेरे थे,
किसने लूटे?

किसने मुझको,
भ्रमित किया?
मेरे उत्कर्षो को
पतित किया।

वह क्या जिसने
छीने मेरे,
सपनो और साँसों
के घेरे?

पाने की चाहत
भी न थी,
आशा की आहट
भी न थी.

फ़िर भी कलियों
में तारों में,
जीना सीखा
विस्तारों में.

देखे सपने
मन दर्पण में
पर सब दर्पण
टूटे क्षण में.....

14.8.08

आज़ादी

दीवारें उगी हैं...ऊंची ऊंची..
बाहर भीतर.....चारो ओर,
दिल पर,आत्मा पर,सोच पर....
आज १५ अगस्त है...
मैं आजाद क्यों नहीं हुई?

9.8.08

जिंदगी.....

फिर चले कोई कारवाँ कर, दे शुरू कोई सफर,
रात न जिसमे हो कोई,और न कोई सहर,
वक्त के हो दायरे और मंजिलें भी कम न हो ,
लहरों की हो ठोकरें और साहिल भी नम न हो,
जिंदगी के अंदाज़ को कुछ ऐसा ही ताल मिले,
जिसपे चले आज हम,कल ज़माने को मिसाल मिले।


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जिंदगी उखड़ी रही थोडी मुडी थोडी तुडी,
फ़िर भी एहसासों से सवंरी और सपनो से जुड़ी,
खुल रहे हैं दर परत दर जिंदगी के फैसले,
हो रहे हैं और भी मज़बूत मेरे हौसलें.