7.12.11

तुम

छीन लेते हो तुम


मेरे जीवन से खुशबु


मेरे मन से साहस


मेरी आत्मा से तृप्ति


कर देते हो मुझे वंचित


...बनाते हो अकिंचन


इससे पहल


की मैं मांगू तुमसे


और पीडाएं


और वन्चानाएं....


एक बात पूछू...उत्तर दोगे मुझे,???


मेरा सब कुछ छीन कर भी


तुम हारे हुए से क्यों दीखते हो?


समझ नहीं आता मुझे


अकिंचन मैं हूँ,


या तुम?

3.3.11

रास्ते.....

वक़्त बड़ा निष्ठुर है.....अमीर हो जाता है सबका सबकुछ छीन कर...पार उदास होने से तो काम नहीं चलेगा.रास्ते तो अब भी बुलाते है.मंजिलें अभी भी इंतज़ार कर रही है.चलना तो पड़ेगा ही.ठोकरों से डरकर बैठने वालों में से तो हम भी नहीं है.वक़्त अच्छा ही कब था जो कहे की आज बुरा है.सबकी अपनी ज़िन्दगी है सवारने के लिए,फिर अपनी ज़िन्दगी से इतनी नाइंसाफी क्यों.रास्ते बुला रहे है.....बस कदम बढ़ाना बाकी है.