13.3.09

कमी...

फ़िर हुए कुछ स्वप्न खण्डित,

फ़िर प्रयत्नों की कमी!

मांगती कुछ रौशनी,

पर चाँद भी तो है नहीं!

न बरसती आँख भी,

पर बादलों में है नमी!

भागता सा वक्त है,

पर ज़िन्दगी जैसे थमी!

पा लिया सब कुछ हो जैसे,

फ़िर भी है कोई कमी!

क्या करुँ कैसे बचूं,

ये सिलसिला थमता नहीं!

मांगता रहता है आश्रय,

मन कहीं रमता नहीं!

पर उम्मीदें छोड़ दूँ क्या.....?

इसकी भी क्षमता नहीं....!!!